हसीना क्या चाहे, अगर हसीनाओं की चाहत पर चाहें और उनकी चाहत पूरी करने लगें तो सारा जहां ही कम पड़ जाए। पर यहां पर बात करेंगे तेलंगाना की। हसीनाओं और तेल का किस्सा बहुत पुराना है क्योंकि हसीनाओं को हसीन फिगर बनाए रखने के लिए नृत्य के रियाज़ में जुटे रहना होता है। पर हसीनाओं की कुछ शर्तें भी होती हैं। इनमें से कुछ को नाचने के लिए नौ मन तेल की जरूरत होती है। एक बेहद प्रचलित लोकोक्ति है कि ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।‘ कुछ हसीनाएं जो नाचना जानती नहीं हैं पर अपने को कमतर भी साबित नहीं होने देना चाहती, वे आंगन को टेढ़ा बतला कर अपना काम निकाल लेती हैं। तेल और आंगन की रिश्तेदारी के नए आयाम कुछ इस तरह से कायम हो रहे हैं कि नौ मन तेल को आंगन में लुढ़काया जाए और तेल में से और तेल के निकलने के रास्ते बंद कर दिए जाएं तो जो स्थिति बनती है वह नृत्य की कम, तैरने की अधिक होती है। फिर तेल में नाचने की कोशिश की तो मुंह जरूर टूटेगा इसलिए उसमें तैरना ही मुफीद रहेगा। अब तेल रिफाइंड रहेगा या सरसों का,इस बारे में पाठक और पाठिकाओं की सलाह को वरीयता दी जाएगी क्योंकि नाच उन्होंने ही देखना है।
वैसे ही जैसे तेलंगाना को राज्य का दर्जा दे कर गाना शुरू किया जाए। अब उस राज्य की प्राथमिकताएं तय करना तो नागरिकों का हक होना चाहिए जबकि इस हक पर डकैती नेता डाल लेते हैं। वे राज्यों के टुकड़े भी इसलिए ही कर सकते हैं कि उन टुकड़ों पर कुत्ता झपटी कर अपना घर भर सकें, चाहे जनता का पेट भरे अथवा नहीं, इसकी चिंता किसी को नहीं रहती है।
अब तेल में तैरते हुए गाने में माहिर तो नेता ही हो सकते हैं, यह विशेष कार्य न तो नृत्यांगनाओं के बूते का है और न नागरिकों के बस का। तेल में तैरना, तेल में गाना, न नौ मन तेल होना, नाच न जाने आंगन टेढ़ा,तेल और तेल की धार देखना, इसमें से कितने ही गुण नृत्यांगनाओं के नहीं नेताओं के चिकनाई आइटम कहे जा सकते हैं। जबकि दोनों शब्दों का आरंभ न से ही होता है। फिर न न करते प्यार तेल से कर बैठे,जबकि प्यार राज्य के बंटवारे पर लुटाया जा रहा है, इस प्रकार का गीत लिखने के लिए प्रसून जोशी तो प्रयास करने से रहे, गुलजार भाई कोशिश कर भी लें अन्यथा मुझे ही लिखना पड़ेगा। पर मेरी राय में यह कार्य बयानवीरों के लिए मुश्किल नहीं है, चर्चा भी खूब होगी। कुछ गलत कह भी दिया तो उससे पलट भी सकते हैं।
और हम सब फिर से एक बार तेलंगाना तेलंगाना खेल सकते हैं। भविष्य में हर नगर का राज्य, राज्य में प्रत्येक घर एक राज्य,पर टकराव तो तब भी खत्म होने का नहीं है, जब सब अपनी अपनी पगार के खुद मुख्तार होंगे और यही मुखियागिरी सभी दुखों की दुखियारी मां के रूप में सम्मान पाती रहेगी।
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