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मानसून प्रिय, डोन्‍ट कम सून

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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मॉनसून प्रिय, डोन्‍ट कम सून। तुम्‍हारे न आने से न जाने कितनों के पेट पल रहे हैं, न जाने कितनों को नौकरियों के लाले पड़ जाएंगे। कितनों ने सौंपे गए कार्य, तुम्‍हारे आने से पहले नालियों को (गंदगी) पापमुक्‍त करवाना, सड़कों पर से कूड़े का भार हटवाना जैसे पुनीत कार्य समय से संपन्‍न नहीं किए हैं। जबकि बजट पूरे के पूरे हजम कर लिए हैं, एक चवन्‍नी बाकी नहीं छोड़ी है। मानसून के पधारते ही उन सबको मलेरिया जैसा कुछ-कुछ हो सकता है जो बिगड़ कर टायफायड बुखार बन सकता है। इसलिए बतौर उनकी नौकरी बचाने की खातिर मानसून प्‍यारे, डोन्‍ट कम सून। तुम सबके प्‍यारे बने रहोगे। नहीं माने और आ गए तो जिनको भी मीमो मिलेंगे, जो नोटिस पाएंगे, अफसरों की डांट सुनेंगे, इस भीषण गर्मी में सड़कों के उद्धार के लिए सड़कों पर मजबूरी में उतरेंगे, वे सब तुम्‍हें खूब दौने-पत्‍तल भर-भर कर गालियां देंगे। इस पर भी मन का गुबार नहीं निकला तो इन्‍द्रदेव को भी भला-बुरा कहेंगे। इसलिए मेरी मानो मानसून, डोन्‍ट कम सून।

मानसून तेरे आने से बिजली विभाग की बिजली कम बिकेगी। वैसे उनके पास कम होते भी वे अधिक बेचने में कामयाब हो रहे हैं। बिजली विभाग के जिन अधिकारियों ने इनवर्टर बेचने वालों से साठ गांठ कर रखी है। उनके बिकते हैं इनवर्टर तब इनकी जेबें करती हैं टर्र …. टर्र ।  अपनी महंगी बिजली की आपूर्ति रोक कर, और महंगा बेचते हैं। इधर इनवर्टरों के बिकने से मिशन कमीशन सफल रहता है। बिजली विभाग की अगर पांच ऊंगलियां होती हैं तो वे सबको घी के कनस्‍तर में डालकर, मुट्ठी भर कर भर निकाल लेते हैं। इतने शातिर होते हैं ये कि इतना होने पर भी सिर कड़ाही में नहीं डालते हैं क्‍योंकि इन्‍होंने सिर कड़ाही में डाला तो बिक रहे इनवर्टरों की जानकारी नहीं मिलेगी, जिससे इनका कमीशन …।

मानसून तुम आए तो आइसक्रीम बेचकर अपना पेट पालने वाले रोएंगे। नींबू पानी, जलजीरा, कोल्‍ड ड्रिंक, कई तरह के ठंडे ठंडे शरबत, ठंडा मतलब कोला बेचने वाली बड़ी कंपनियां भी छोटे मुंह करके सुबक-सुबक कर रोएंगी। जब वे रोएंगी तो तुम्‍हें आशीष तो देने से रहीं, वैसे भी वे बाबाओं से परम दुखी हैं, गालियां ही देंगी और गालियों के रिफ्रेशर कोर्स आजकल की फिल्‍मों में खूब फेमस हो रहे हैं। गालियां कहीं अनारकली, कहीं सलमान खान और राखी सावंत हो रही हैं।

मानसून के आने से सूरज का प्रभाव कम होगा। फिर भी वह तुझे भाप बनाकर उड़ाने में कमी नहीं करेगा। जो बचेगा वह नालियों और सड़कों को नहलाएगा। मानसून, जो तू आ गया तो डॉक्‍टर खून के लाल आंसुओं से चेहरा भिगोएंगे। जैसे तेरा सीजन होता है, वैसे ही जब तू आने वाला होता है, उससे पहले उनके धंधे का वेलकम होता है। तू आसमान पर बादलों के रूप में रोता है। धरती को भिगोता है। कहीं खुशी आती है। हरियाली छाती है और वहीं कहीं पर गरीबों की छाती पर मूंग की दाल दली जाती है। वे काम पर नहीं जा पाते और भूखे रहकर मानसून के आगमन पर मन से दुखी होकर रोते हैं। तू बरसता है, छाते बिकते हैं, बिकने के बाद छाते भीगते हैं और खरीदने वालों को सूखा रखकर सुख देते हैं। तू बरसता है तो बाद में सब उमस से पसीना पसीना होता है। इसलिए मानसून, तू आना पर जितना टरका सकते हो, टरकाना। तुम्‍हें शायद नहीं मालूम कि टरकाने से ही डिमांड बढ़ती है। गुणों के बारे में सबको मालूम होती है। तू बरसता है तो लोग कहते हैं कि तू रो रहा है। अब जब तू सो रहा है तो सोता रह, सोता बनकर मत बह। सब चाहते हैं कि तू जल्‍दी रो तो पृथ्‍वीवासियों का रोना बंद हो। वे तो तुझे रोता (बरसता) देखकर खुश होते हैं।

बिजली होती है तो बढ़े हुए बिल के लिए रोते हैं। न हो तो उसके न होने को लेकर रोते हैं। पानी बरस जाए तो रोते हैं। घर के नलकों में पानी न आए तो रोते हैं। पानी आए और बिल बढ़े हुए आएं तो रोते हैं। रोना मनुष्‍य का स्‍वभाव है परंतु दूसरे को दुखी करके जरूर खुश होते हैं।

सो मानसून, डोन्‍ट कम सून।

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