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संसद की बत्‍ती गुल

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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यह गुल, गुलशन और गुलफाम होना है। मेरे देश के संसद की बत्‍ती गुल हो गई है या कर दी गई है। बात एक ही है। संसद में दिन दहाड़े शोर मचाने वालों की बत्‍ती एक बाबा ने गुल कर दी है। एक बाबा की बत्‍ती मीडिया वाले गुल करने पर जुटे हैं जबकि लाखों-करोड़ों उन्‍होंने भी लूटे हैं। नेता घपलों की बत्‍ती जलाने में जुटे हैं। वह बत्‍ती जलते ही महक आती है और काले धन के जलने की बात बताती है। न जाने कैसे छिपाने पर भी खबर लग जाती है। वह रास्‍ता तिहाड़ तक बनाती है। सारे पहाड़े वे भूल जाते हैं। जबकि जनता की बत्‍ती होते हुए भी सदा से गुल है। विश्‍वास यही है यही हालात रहेंगे और जनता की बत्‍ती सदा ही गुल रहेगी। कहीं किरपा करने के बहाने बत्‍ती गुल हो रही है। बत्‍ती गुल करना एक राष्‍ट्रीय शगल बन गया है। पहले इतना आसान नहीं हुआ करता था किसी की बत्‍ती गुल करना। आजकल सबसे आसान बत्‍ती गुल करना हो गया है। इसमें सोशल मीडिया के असर की अनदेखी नहीं की जा सकती है। जबकि सीएफएल की खोज कर ली गई है जिससे बिजली की कम खपत हो और बत्‍ती गुल होने की संभावना ही न रहे। बत्‍ती गुल होने का कारण कोई सड़कों पर लगे जाम को बतलाने में फख्र महसूस कर रहा है। कोई यह कहने में नहीं चूक रहा है कि आजकल बत्‍ती का सबसे अधिक हिस्‍सा तो मोबाइल फोन चार्जिंग के नाम पर पी रहे हैं। कहने वाले यह भी कहने से नहीं चूक रहे हैं कि जितनी अधिक दारू पी जाएगी, उतनी अधिक देश की बत्‍ती गुल हो जाएगी। जबकि दारू के बिकने से खूब सारा कर मिलता है। सरकार लंबे हाथ कर कर के कर वसूल लेती है, इसे भी बत्‍ती गुल होने का एक महत्‍वूपर्ण कारक माना जा रहा है।  मोबाइल फोन है तो बत्‍ती गुल और नहीं है तो मोबाइल फोन की बत्‍ती जलाकर भी गुल होने से बचा नहीं जा सकता है। आप सारे घर की खिड़की दरवाजे बंद कर लीजिए। बत्‍ती ने गुल हो ही जाना है। कभी आपने किसी पब की, किसी फाइव स्‍टार होटल की बत्‍ती गुल होने का समाचार सुना है। सुन ही नहीं सकते, उनकी बत्‍ती गुल होना कोई समाचार नहीं है। संसद की बत्‍ती गुल होना एक सनसनीखेज न्‍यूज है। इसे ब्रेकिंग न्‍यूज का दर्जा मिल चुका है। संसद में एक बल्‍ब भी फ्यूज होने पर ब्रेकिंग न्‍यूज बनने की हैसियत रखता है।  संसद में आला दर्जे की सिक्‍यूरिटी के बावजूद पहलवान बत्‍ती ने गुल होने में देर नहीं लगाई और तब तक कई बार गुल होती रही जब तक सब चि‍ड़चिड़ा नहीं गए, चिडि़या होते तो उड़ गए होते। आप सोचिए जिस देश की संसद की बत्‍ती गुल हो सकती है। फिर उस देश में आसमान में चमक रही सूरज की बत्‍ती गुल करने में बादल कितनी देर लगाएंगे। वह भी तो, चाहे हवा में उड़ जाएं, परंतु अपनी पहलवानी तो जरूर दिखाएंगे। पहलवान होने के लिए हलवाई होना जरूरी नहीं है, कई बार हवाई होना ही पहलवान होने के लिए काफी असरकारक होता है। संसद की इत्‍ती मोटी मोटी दीवारें, फेसबुक की दीवारें उसका क्‍या मुकाबला करेंगी, लेकिन संसद को फेकभवन बना दिया और बत्‍ती गुल। अब जब संसद की बत्‍ती गुल होना कोई मामूली बात तो है नहीं। यह बत्‍ती तो लौट आई है लेकिन बत्‍ती के गुल होने के कारण कईयों की बत्तियां गुल हो गई हैं। बत्‍ती का गुल होना कोई गुलगुले खाना नहीं है। गुलगुले खाने के लिए परम संतोषधन चाहिए। गुलगुले बने बनाए मिलते हैं। इस प्रकार के गुलों को फिल्‍मी गीतों में भी खासा रुतबा हासिल है। ‘एक था गुल और एक थी बुलबुल। दोनों चमन में रहते थे। यह है कहानी बिल्‍कुल सच्‍ची। मेरे नाना कहते थे।‘ की तर्ज पर पैरोडी लिखी जाएगी। ‘एक था गुल और एक थी बुलबुल। दोनों संसद भवन में रहते थे। यह है कहानी बिल्‍कुल सच्‍ची। मीडिया वाले कहते थे।‘ फिर भी एक दिन संसद की बत्‍ती गुल होने का समाचार गुल खिला गया।

गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज करने वाले भी आज देश में गुल को कुड़ समझकर खाने वाले भी तैयार बैठे हैं। चाहे वे गुड़ का उच्‍चारण दूसरे को समझ में आने तक कुड़ कहकर करते रहें और सामने वाला शसोपंज में भ्रमित रहे और जब उसे मालूम चले कि यह तो गुड़ कह रहा है तो वह खुद तो हंसे ही, इस दृश्‍य को देखने सुनने वालों का हंसी का फौव्‍वारा बिना बत्‍ती के ही तेजी से छूटना तय है। अब आप गुड़ खाने में रुचि रखते हैं या बत्‍ती गुल करने में। बत्‍ती गुल करने में जोखिम रहता है कि न जाने कब अपनी ही बत्‍ती और बत्‍तीसी दोनों ही  गुल हो जाएं। वैसे कोई नहीं चाहता कि अपनी बत्‍तीसी गुल हो, चाहे सामने वाले की बत्‍ती गुल हो जाए। गुल होने को आप गोल होना भी मान सकते हैं। संसद की बत्‍ती का गुल होना, गोल होना नहीं, बिजली देने वालों का बोल्‍ड होना है। जिन्‍हें कुछ शब्‍द फेंककर मार दिए जाएं तो वह आक्रोश से लबालब हो जाते हैं। वे जहां बैठे हों, वहां की बत्‍ती गुल हो जाए तो इससे शोचनीय और शर्मनाक स्थिति देश के लिए और क्‍या हो सकती है ?

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