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अनशन का टूटना और भ्रष्‍टाचार का रूठना

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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भ्रष्‍टाचार और भ्रष्‍टाचारी इस ताक में थे कि अन्‍ना हमारे का अनशन न टूटे, जिससे उनके प्रचार-प्रसार और फैलाव पर कोई आंच न आए, परंतु होता वही है जो होनी और पब्लिक को मंजूर होता है। अब से पहले पब्लिक से ऊपर संसद की, और होनी से ऊपर सांसदों का प्रभाव दिखाई देता रहा है। पहले तो उसे विश्‍वास ही नहीं हुआ कि पीएम ने अन्‍ना को चिट्ठी भेजी होगी, उसने तो पूरा इंतजाम किया था कि ऐसी कोई दुर्घटना न हो जाए। चिट्ठी लिखनी भी पड़े तो फिर किसी न किसी फेर में उलझा दी जाए, तीन में से दो ही शर्तें मानी जाएं, जिससे अन्‍ना अड़े रहें और अनशन स्‍थल पर ही भूखे पड़े रहें, पर फिर वही कि होनी को कौन टाल सका है। टलना तो दूर, इधर तो उसको गुमराह करना भी कठिन होता जा रहा है। अब ऐसे में अगर भ्रष्‍टाचार रूठता भी नहीं तो और क्‍या करता, इतनी जल्‍दी रोना उसे रास नहीं आता है क्‍योंकि वो तो सदा से अपने सामने वालों को रूलाता रहा है और साथ वालों को खुशियाता रहा है।

उसने तो यह भी सोचा था कि चिट्ठी को साधारण डाक से लैटर बॉक्‍स के हवाले कर दिया होगा। हो सकता है कि डिस्‍पैच क्‍लर्क को ही थमा दी हो चिट्ठी और वहां से तो सोमवार से पहले तो किसी भी सूरत में निकलने से रही। सोमवार को भी डाक में चली गई तो मंगल या बुधवार से पहले तो रामलीला मैदान पहुंचने से रही और फिर क्‍या गारंटी कि वो डाक के अं‍बार में खो नहीं जाएगी, खोई नहीं तो दो चार घंटे तो उसे सही हाथों में पहुंचने में तो लगेंगे ही, आखिर वहां पर इतनी अधिक भीड़ है। अगर स्‍पीड पोस्‍ट से भी भेजी होगी तो उसमें पोस्‍ट की ही बहुलता होगी, स्‍पीड तो उसमें से वैसे ही गायब होगी, जैसी सरकार और उसके कार्यों में से गायब रहती है।

लेकिन जब भ्रष्‍टाचार को मालूम पड़ा  कि पीएम की चिट्ठी में तो सभी बातें मान ली गई हैं और उसे साधारण डाक अथवा स्‍पीड पोस्‍ट से न भेजकर, पीएम ने अपने विशेष दूत के हाथों से भिजवाया है और उस पत्र पर पीएम अपने साइन करना भी नहीं भूले हैं तो उसने अपना सिर एकदम से सामने दीवार में दे मारा क्‍योंकि उसे मालूम था कि सामने जो दीवार बनाई गई है वो सीमेंट की नहीं, थर्मोकोल की है। नतीजा, थर्मोकोल की दीवार जिस तरह धराशायी हो गई, भ्रष्‍टाचार को लगा कि उसकी नियति भी ऐसी ही होने वाली है।

इतना दर्द महसूस कर रहा था भ्रष्‍टाचार कि उसे इतना भी नहीं अहसास हुआ कि कब अनजाने में उसके हाथ में रिमोट आ गया और आदतन पॉवर बटन दब गया जिससे उसे वही दिख गया जो वो देखने से बचना चाह रहा था। सामने एलईडी की 42 इंची टीवी स्‍क्रीन पर दो कन्‍याएं अन्‍ना को नारियल पानी और शहद का सेवन कराकर उनका अनशन तुड़वा रही थीं। उधर अन्‍ना का अनशन टूट रहा था और इधर भ्रष्‍टाचार महाशय को अपना भविष्‍य गर्त में नजर आ रहा था। उसकी आंखें धुंधलायी सी हो गई थीं क्‍योंकि उनमें पानी आ गया था, जो गारंटिड शर्म का नहीं था।

अब कौन सा गेम खेला जाए, खैर … भ्रष्‍टाचार ने खूब गेम खेले थे, जी भर के प्रत्‍येक स्‍तर के दुर्जनों को खेले और खिलवाए थे, कितने ही तो उसके चेले तिहाड़ में उसका नाम रोशन कर रहे थे और वे अन्‍ना से उनके जबर्दस्‍ती जेल प्रवास के दौरान मिले भी थे, जो नहीं भी मिल पाए थे, उन्‍हें अन्‍ना के वहां पहुंचने और कब्‍जा करने तथा वापसी की पूरी रिपोर्ट अत्‍याधुनिक संचार माध्‍यमों के जरिए मिल गई थी।

तिहाड़ में ए. राजा, कनिमोझी इत्‍यादि खूंखार भ्रष्‍टाचार शिरोमणि मौजूद थे, जो किसी भी आरोप के जवाब में यही कहते थे कि यह करने के निर्देश तो हमें पीएम ने या होम मिनिस्‍टर ने दिए थे। इस प्रकार वे सरकार को भी सीधे सीधे अपने चंगुल में लपेटने में दिमाग चलाते रहते थे। ऐसी कितनी ही खबरें टीवी चैनलों और प्रिंट मीडिया की सुर्खियां बन चुकी थीं। अब इसमें कितना सच है, इसे बतलाने की जरूरत नहीं है।

भ्रष्‍टाचार को अपना भविष्‍य अंधकारमय नजर आ रहा था परन्‍तु उसने हिम्‍मत नहीं खोई थी और वह बहादुरीपूर्वक अपने होश खो बैठा था। होश खोए खोए उसने देखा कि सारे अखबारों में, टीवी चैनलों में उसकी विदाई-पिटाई की खबरों की ही चर्चा थीं। अंतत:, भ्रष्‍टाचार को भारतभूमि से रुखसत होना ही था।

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