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असली डिग्रीधारक असली घोटाले कर सकते हैं। फर्जी डिग्रीधारक को उनका जिक्र करने का भी हक नहीं है। डिग्री असली होगी तो घोटाला भी असली और उचित गुणवत्ता का होगा, अधिक सतर्क होकर किया जाएगा। उन सबको भनक न लग रही हो तब भी लगवाई जाएगी, जिनके नाम शामिल होने से बाद में बच निकलने के लिए लाभ मिल सके।
डिग्री असली हो तो सब नकली चलता है क्योंकि नकली डिग्री बांटकों और धारकों से बाजार पटा पड़ा है। आजकल शिक्षा ही इतनी महंगी हो गई है कि लगता है एक दिन नकली डिग्रियों को कानूनी मान्यता मिल जाए, तो क्या आश्चर्य। वैसे भी नकली डिग्रीटिंग्स हासिल करना कोई कम जोखिम का कार्य है। असली काम में तो रिस्क होता ही नहीं है इसलिए बहुत से जोखिम प्रिय लोग असली का चक्कर पालते ही नहीं है। यहां तो डिग्री की बात चल रही है। जहां तक डी एल ड्राइविंग लाइसेंस का सवाल है, नकली डीएल सर्वाधिक चलन में हैं। एक स्टेट या पड़ोस के स्टेट का तो दिल्ली में खूब स्मूदली चलता है। डीएल असली हो तो भी उसका रंगीन फोटो लेमिनेशन कराकर लेकर चलने का रिवाज हैं। पकड़े जाने पर वही थमाते हैं, फिर जो खिसक जाते हैं, तो हाथ नहीं आते हैं।
नकली या फर्जी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। अब दूध इतना महंगा हो गया है। आबादी बढ़ गई है इसलिए एक पंथ दो चार काज करना तो आम बात है। महंगा है तो सिंथेटिक दूध बनाने में मोटा मुनाफा है। जिसे पीने से लोगों को बीमारियां होती हैं। डॉक्टर और दवाई निर्माता खुश रहते हैं। मरते हैं तो श्मशान वाले प्रसन्न और आबादी घट रही है इसलिए सरकार प्रसन्नमना। अब भला असली शुद्ध दूध से इतनी खुशी मिल सकती है। इसी तरह धन काला पसंद किया जाता है।
मेहनत का धन चाहे टैक्स के तौर पर सरकार को बरबाद करने के लिए सौंपने से अच्छा है कि काला ही रहे। सफेद करेंगे तो कम हो जाएगा। तीस प्रतिशत तक तो सरकार खा जाएगी और सरकार भी भला कौन से शुद्ध दूध की नहाई है या साफ गंगा के छींटे मुंह पर मारकर आई है। जो उसे ईमानदारी से अपनी मेहनत की कमाई पर डाका डालने दिया जाए।
सरकार के पास भी जाएगा तो वहां पर भी नाम के राजा पर जेब के कंगले डाका डालने पर उतारू मिलेंगे। और जो डाका डालकर तिहाड़ में बैठे हैं, वे सब कुछ भूलने का नाटक करने में पारंगत हो चुके हैं। कभी दिमाग और कभी दिल, जनता को सब पीस रहे हैं समझकर तिल। इसलिए जनता पिसती रहती है पर जनता वो तिल है, जिनमें तेल नहीं है, इसलिए योग करे। एक राज खोलता हूं, संदेह नहीं पूरा विश्वास है कि इस मामले में नकली कुछ नहीं, बस सरकार की नीयत के बारे में जो सरकार का विरोध करने वालों पर चोट कर रहा है।
बाबा ने सरकार से पंगा लिया है तो सरकार उनसे जुड़े लोगों को बलात् नंगा करने पर लगी हुई है। सरकार की नीयत खराब हो चुकी है इसलिए उसकी नियति भी सुरक्षित नहीं रह सकती। अगर ऐसा नहीं है तो आपको क्या लग रहा है कि बालकृष्ण, कृष्ण नहीं कंस है ?
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