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जहाजों का आसमान में जफ्फी पाना

अविनाश वाचस्‍पति
अविनाश वाचस्‍पति
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मशीन और मानव में यह किस प्रकार की प्रतिद्वंद्विता दिखलाई दे रही है। जहाजों में यह क्‍या हो रहा है, कोई जमीन से कई हजारों फीट ऊपर हिचकोले लेने लगता है। कोई ऐसे सुलगने लगता है जैसे गुस्‍से से लाल हो रहा हो। मशीनें इस फिराक में हैं कि आप दिमाग में बुनें और वे उसे उधेड़ डालें। सिर्फ उधेड़ें ही नहीं, पूरा का पूरा आपके दिमाग से सलेक्‍ट करके कापी कर लें। आप सोचने की प्रक्रिया में हों और वे आपके दिमाग को पढ़ लें। खतरे मशीन को मानव से बहुत हैं। चाहे मशीन क्रिया कर रही हो या मानव प्रतिक्रिया कर रहा है, सब किया धरा मानव का ही है।

मानव की लापरवाही का सबब ही है कि उड़ते जहाज के पास से तेजी से दूसरा जहाज फर्राटे से जाता है और गुजरने से बच जाते हैं दोनों। न सिर्फ जहाज ही, उसे उड़ा रहे पायलट और उनके सभी जहाजीय सहकर्मी तथा सभी यात्री। ख्‍याल आता है कि जहाजों में मुन्‍नाभाईगिरी कहां से आ गई है कि दोनों एक दूसरे को जफ्फी डालने को बेताब हो रहे थे। शुक्र है कि नहीं डाल पाए। अगर दोनों गले मिल जाते तो इस जहाज में जितने इंसान मौजूद हैं, सबके गले कट जाते। सब लुढ़क जाते, लुढ़कता तो जहाज भी। उसके तो कुछ हिस्‍से, कुछ कल, कुछ पुर्जे – काफी कबाड़ सब काम में ले आते, परंतु इंसान का कोई अंग काम न आता। एक न बच पाता। सबको जला-दफना दिया जाता। पोस्‍टमार्टम का नाम होता, लाशों को यूं ही निपटा दिया जाता।

जहाज सिर्फ दो ही निपटते लेकिन उन्‍हें चलाने वाले, उसमें बैठकर आने-जाने वाले तमाम काल में समा जाते। कोई भी किस्‍सा सुना न पाता। जहाज जब हजारों फीट ऊपर से कलाबाजियां खाता है तो उसकी कला के हुनर से एक भी काल के गाल में समाने से नहीं बच पाता है। जमीन पर भी उसकी जद में निर्दोष ही आते हैं।

माना कि गले मिलना अच्‍छी आदत है। पर जहाजों को न तो इनकी आदत डाली जाती है और न ही किसी को उनकी यह हरकत पसंद आती है। गले मिलने का यह फंडा विमान अथवा वाहनों में नहीं चलता। अगर मशीन ही मशीन से गले मिलेगी, तो गले मिलने के लिए इंसान कैसे बचेंगे। वाहनों का गले मिलना, गले पड़ना कहलाएगा। नतीजा, एक न जिंदा रह पाएगा। सब गिरते, जलते, टूटते, जिंदगियों को लूटते, बम की तरह फूटते नजर आएंगे। गिरेंगे नीचे जमीन पर, सड़क पर या कहीं भी नीचे ही, परंतु सब उड़ गए, कहलाएंगे।

समझ नहीं आ रहा है कि क्‍यों दो जहाज, आसमान में हवा में, एक दूसरे की तरफ ताल ठोकते हुए बढ़े जा रहे हैं। क्‍यों नहीं वे समझ पा रहे हैं कि कोई हवा में किसी से भी उलझे, गर्क सभी होंगे बिना बारी के। नहीं होगा तनिक भी कसूर जिनका, सब वे बेकसूर ही मारे जाएंगे। सवार सभी बिना इंधन के, परलोक की ओर कूच कर जाएंगे। आप इसके बारे में कुछ बतलायेंगे ?

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